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श्री हनुमान जी फोटो सोशल मीडिया |
भगवान श्री राम के परम प्रिय भक्त महाबली श्री केसरी नंदन हनुमान जी विद्या, बुद्धि और बल के महासागर है, इनको माता सीता ने लंका के अशोक वाटिका में अजर अमर होने का वरदान दिया था।
अजर अमर गुननिधि सुत होहू।
करहुँ बहुत रघुनायक छोहू॥
माता सीता की तरह ही और देवताओं ने भी श्री हनुमान जी को सदा अजर अमर होने का वरदान दिया है। इसी के फलस्वरूप कलयुग में इनकी की आराधना सबसे उपयुक्त है। तो आइये जानते है हनुमान जी के जन्म की कथा के बारे में,महावीर हनुमान जी जन्म कथा :- पहली कथा - वेद, पुराणों और ग्रंथों में लिखी गयी कथाओं के अनुसार अयोध्या के महाराज चक्रवर्ती सम्राट राजा श्री दशरथ जी के चौथेपन तक कोई संतान प्राप्त नहीं हुई तो,उन्होंने अपने कुलगुरु वशिष्ठ जी के कहे अनुसार पुत्रेष्ठि महायज्ञ को पूर्ण करने की सलाह दी,
इस पुत्रेष्ठि यज्ञ में सम्मलित होने के लिए बड़ी दूर-दूर से एक से बढ़कर एक विद्वान ऋषि मुनि पधारे, यज्ञ को बड़ी ही सफलतापूर्वक पूर्ण कर लिया गया। यज्ञ की पूर्णाहुति के समय अग्निकुंड से अग्नि देवता प्रकट हुए जो अपने हाथो में प्रसाद रुपी खीर लिए हुए थे महाराज दशरथ ने उस प्रसाद को अपनी तीनों रानियों को रानी कौशल्या, सुमित्रा तथा कैकेई को बराबर भाग में बांट दिया।
महारानी कौशल्या तथा महारानी रानी कैकई ने तो अपना-अपना भाग खा लिया किन्तु जैसे ही सुमित्रा ने अपने हिस्से का प्रसाद उठाया तभी अचानक आकाश से गरूड पक्षी आया और उस प्रसाद को अपनी चोंच में दबाकर पुनः आकाश की ओर उड़ गया। ठीक उसी समय एक पर्वतीय स्थान पर
महारानी अंजना पुत्र प्राप्ति हेतु तपस्या कर रही थीं।वह प्रसाद गरूड़ से छूटकर उनकी गोद में आ गिरा। अंजना को लगा कि यह उनकी तपस्या का फल है उन्होंने उस प्रसाद को ईश्वर का आशीर्वाद समझ कर उसे खा लिया उस खीर रूपी प्रसाद के फलस्वरूप माता अंजनी को आंजनेय कुमार यानि महावीर श्री हनुमान पुत्र रत्न के रूप में प्राप्त हुए।![]() |
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महावीर हनुमान जी जन्म कथा :- दूसरी कथा के अनुसार पुराणों में प्रसंग है, कि देवताओं के राजा इन्द्र के स्वर्गलोक में बहुत सी अप्सरायें रहा करती थीं, उन्हीं अप्सराओं में से एक पुंजिकस्थला नाम की अप्सरा थी। एक समय वह इंद्र की सभा में उपस्थित थीं तभी दुर्वासा ऋषि का स्वर्गलोक में आगमन हुआ। महर्षि दुर्वासा एवं देवलोक के राजा इंद्र आपस में वार्तालाप क़र रहे थे, तभी वहां पर मौजूद अप्सरा पुंजिकस्थला अपने चंचल स्वभाव के कारण एक स्थान पर न रहकर इधर-उधर आ-जा रही थीं इससे दुर्वासा ऋषि को क्रोध आ गया और अपने ध्यान में विघ्न पड़ने के कारण उन्होंने पुंजिकस्थला को वानरी हो जाने का शाप दे दिया।
महर्षि दुर्वासा के मुख से कठोर शब्द सुनते ही वह रोने लगी तथा क्षमा याचना करने लगीं। अप्सरा का रोना देखकर देवेंद्र तथा वह उपस्थित अन्य देवताओं की प्रार्थना करने से महर्षि दुर्वासा का क्रोध शान्त हुआ और उन्होंने कहा कि दिया हुआ शाप तो वापस नहीं लिया जा सकता लेकिन मैं तुम्हें ये आशीर्वाद देता हूं कि तुम्हारा जन्म पृथ्वीलोक पर वानरश्रेष्ठ राजा विरज के यहां होगा।तुम अपनी इच्छा के अनुसार जब चाहोगी अपना रूप भी बदल सकोगी और भविष्य में तुम महापराक्रमी, महाबलशाली तथा तेजोमय पुत्र की माता बनोगी जिसकी ख्याति युगों-युगों तक स्थापित रहेगी वह भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का अनन्य भक्त तथा सेवक होगा। भगवान श्री राम के जीवन में आपके पुत्र की बहुत बडी भूमिका होगी तथा वह उनके कई कार्यों को सिद्ध करेगा।उसी शाप के परिणामस्वरूप पुंजिकस्थला का जन्म मृत्युलोक में राजा विरज की पत्नी के गर्भ से हुआ तथा उनका नाम अंजना रखा गया। अंजना जब विवाह योग्य हो गईं तो राजा विरज ने वानरराज केसरी से उनका विवाह कर दिया जिसके पश्चात श्री हनुमान जी का जन्म हुआ Shree Hanuman Janam Katha।
जिस समय भगवान श्री राम अपना वनवास खत्म करके पुष्पक यान से वापस अयोध्या लौट रहे थे तब उन्होंने हनुमान जी से माता अंजना के दर्शनों की इच्छा प्रकट की तब सभी माता अंजना के दर्शन को गये तथा श्री राम ने ऐसे तेजस्वी पुत्र को जन्म देने के लिए अंजना की प्रशंसा की।
दोस्तों इसी तरह एक कहानी और प्रचलित है। समुद्र मन्थन की कथा तो आपने सुनी ही होगी जिस समय अमृत से भरा हुआ कलश समुद्र से निकला तो असुर उसे लेकर भागने लगे। उस समय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धरकर असुरों को अपने रूप से मोहित करते हुये वह अमृत कलश उनसे प्राप्त कर लिया और देवताओं को अमृत पान कराया।
राहु नामक एक असुर ने धोखे से एक देवता का रूप धरकर अमृत पी लिया था लेकिन वह अमृत उसके गले से नीचे उतरने से पहले ही विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका गला काट दिया तब से राहु का केवल धड़ अमर हो गया।
कहते हैं कि श्री हरि विष्णु का वह रूप इतना सुंदर था कि भगवान शिव ने जब यह रूप देखा तो वे भी मोहित हो गये और उनका तेज स्खलित हो गया।भगवान शिव के उस तेज को संभाल पाना किसी के वश में नहीं था सभी देवता विचार करने लगे कि इस तेज का क्या किया जाये ? सभी देवताओ के आग्रह करने पर भगबान श्री हरी विष्णु जी ने इस तेज को धारण करने की क्षमता प्रदान करते हुये तपस्या कर रही देवी अंजना के गर्भ में स्थापित कर दिया जिससे शिवजी के 11वें रूद्रावतार के रूप में महाबलशाली श्री हनुमान जी का जन्म हुआ Shree Hanuman Janam Katha।
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