प्रस्तावना:
भारतीय संस्कृति और परंपरा में त्योहारों का विशेष महत्व है। इन त्योहारों के माध्यम से लोग अपने जीवन को रंग भरते है, और समाज के आदर्शों और मूल्यों को अपनाते हैं। एक ऐसा ही प्रमुख और प्रिय त्योहार है "नवरात्रि", जिसका आयोजन साल में दो बार होता है। यह हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जिसके दौरान लोग माता दुर्गा की पूजा और आराधना करते हैं।इस बार शारदीय नवरात्रि 15 अक्टूबर 2023 दिन रविवार से शुरू हो रहे हैं और 23 अक्टूबर 2023 दिन मंगलवार को समाप्त हो रहे हैं। 24 अक्टूबर विजयादशमी या दशहरा का पर्व मनाया जाएगा।
इस लेख में, हम नवरात्रि त्योहार के पीछे की पूरी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और तथ्यों को जानेंगे। नवरात्रि एक प्रमुख हिन्दू त्योहार है, जिसके दौरान माता दुर्गा की पूजा और आराधना की जाती है। इसका आयोजन वसंत और शरद ऋतु में होता है, जिसमें शारदीय नवरात्रि का अधिक महत्व होता है। नवरात्रि के दौरान भक्तों का मानना है कि माता दुर्गा उनकी मनोकामनाएं पूरी करती हैं और उन्हें शक्ति प्रदान करती हैं। इस त्योहार के माध्यम से समाज में एकता, समरसता, और भाईचारे की भावना को बढ़ावा मिलता है और लोग उच्च मानकों की ओर बढ़ते हैं।
नवरात्रि का प्राचीन इतिहास पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में प्रकट होता है। इसके अनुसार, माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का आयोजन भगवान श्रीराम ने लंका के राक्षस राजा रावण के विनाश के लिए किया था। रावण का वध भगवान राम द्वारा नवरात्रि के दौरान ही हुआ था, जिससे यह त्योहार महत्वपूर्ण हो गया।
नवरात्रि के विभिन्न अष्टमी तिथियों पर नौ दिनों तक व्रत रखने की परंपरा भी है, जिसमें भक्त नियमित रूप से विशेष प्रकार के आहार और विश्राम का पालन करते हैं।
नवरात्रि का महत्व धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से ही नहीं होता, बल्कि यह एकता, समरसता, और समाज में भाईचारे की भावना को भी बढ़ावा देता है। यह त्योहार समृद्धि, सफलता, और सद्गुणों की प्रतीक माना जाता है, जिससे लोग अच्छे और उच्च मानकों की ओर अग्रसर होते हैं।
नवरात्रि का पौराणिक अर्थ और महत्व:
नवरात्रि का महत्व पुराणों में कई कथाओं के माध्यम से प्रकट होता है। एक प्रमुख कथा के अनुसार, महिषासुर नामक राक्षस के अत्याचार से तंग आकर देवताओं ने देवी दुर्गा की उपासना की और माँ दुर्गा उसका वध किया था। महिषासुर ने अपनी अत्याचारी शक्तियों के बल पर तीनो लोक में हाहाकार मचा रखा था । देवताओं की पराजय के बाद वे दुर्गा माता के समक्ष आए और उनसे युद्ध की अपेक्षा की। उनका युद्ध सौरभ महायुद्ध के रूप में जाना जाता है, जिसमें दुर्गा माता ने नौ दिनों तक महिषासुर के खिलाफ लड़ा और उसे मार गिराया। इस कथा से यह संकेत मिलता है कि नवरात्रि के दौरान दुर्गा माता की पूजा करके बुराई और अधर्म का नाश किया जा सकता है।
नवरात्रि के रूप और पूजा:
नवरात्रि के दौरान माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है। इन नौ रूपों के नाम हैं: शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्री। प्रत्येक रूप की अपनी विशेष गुणधर्म होती है और उनकी पूजा के दौरान उनके विशिष्ट मंत्र और मंत्रोच्चारण किए जाते हैं।
नवरात्रि का मतलब और महत्व:
"नवरात्रि" शब्द का अर्थ होता है "नौ रातें"। यह त्योहार आदिशक्ति माता दुर्गा के आराधना का एक विशेष अवसर है। नवरात्रि का महत्वपूर्ण संकेत है कि दुर्गा माता के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिनका प्रत्येक रूप एक विशेष शक्ति का प्रतीक होता है। यह त्योहार धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है।परंपरा:
नवरात्रि का आयोजन वर्षा ऋतु के आगमन के पश्चात् होता है, जब पृथ्वी की उत्तरी दिशा से आदिशक्ति माता का आगमन होता है। इसका आयोजन विभिन्न राज्यों में अलग-अलग तरीकों से किया जाता है, लेकिन इसके पीछे का मुख्य उद्देश्य दुर्गा माता की पूजा और उनकी महाकाव्यिक लड़ाई का उत्सव मनाना होता है।
नौ दिनों की पूजा :
नवरात्रि के दौरान नौ दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा की जाती है, जिन्हें नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। प्रत्येक दिन एक विशेष रूप की पूजा की जाती है और उसकी विशेष प्रासाद का भोग लगाया जाता है। यह पूजा परंपरागत रूप से किए जाते हैं और साथ ही इसके साथ गीत, नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। नवरात्रि में नौ देवियों की पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, जिन्हें नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है। यह देवियाँ विभिन्न रूपों में होती हैं, जिनका प्रत्येक रूप एक विशेष शक्ति का प्रतीक होता है। इस अनुभाग में, हम नौ देवियों के नाम और उनके पूजा दिनों के साथ उनके महत्व को समझेंगे,
- मां शैलपुत्री:
- पूजा दिन: पहले दिन (प्रतिपदा) मां शैलपुत्री का रूप: मां शैलपुत्री का रूप विशालकाय, गौरीपुत्री के नाम से भी जाना जाता है। वह वृषभ (नंदी) पर बैठी होती है और त्रिशूल धारण करती है। महत्व: इस दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक शक्ति मिलती है।
- मां ब्रह्मचारिणी:
- पूजा दिन: दूसरे दिन (द्वितीया) मां ब्रह्मचारिणी का रूप: मां ब्रह्मचारिणी ब्रह्मचर्य और तपस्या की प्रतिष्ठा का प्रतीक होती है। महत्व: इस दिन की पूजा से व्यक्ति को साहस और संयम की प्राप्ति होती है।
- मां चंद्रघंटा:
- पूजा दिन: तीसरे दिन (तृतीया) मां चंद्रघंटा का रूप: मां चंद्रघंटा का रूप चांद्रमा की आकृति धारण करते हुए होता है, जिसका मतलब है कि उनका मुख चांद्रमा की तरह उज्ज्वल और शांत होता है। महत्व: मां चंद्रघंटा की पूजा से भयभीति और दुखों का नाश होता है, और व्यक्ति की मानसिक स्थिति में सुधार होता है।
- मां कूष्माण्डा:
- पूजा दिन: चौथे दिन (चतुर्थी) मां कूष्माण्डा का रूप: मां कूष्माण्डा का रूप भगवान विष्णु की शरणागति का प्रतीक होता है, जिनकी अपनी उंगली से भगवान विष्णु का वध किया था। महत्व: मां कूष्माण्डा की पूजा से व्यक्ति के कष्टों का नाश होता है और उन्हें संबल मिलता है।
- मां स्कंदमाता:
- पूजा दिन: पांचवे दिन (पंचमी) मां स्कंदमाता का रूप: मां स्कंदमाता का रूप सुनहरे रंग के वस्त्र में होता है और उनके आगे बेटे स्कंद (कार्तिकेय) बैठे होते हैं। महत्व: मां स्कंदमाता की पूजा से व्यक्ति को आत्मविश्वास और सहायता मिलती है।
- मां कात्यायनी:
- पूजा दिन: छठे दिन (षष्ठी) मां कात्यायनी का रूप: मां कात्यायनी का रूप चंद्रमा के समान सुंदर होता है और उनके हाथ में चाकु होता है। महत्व: मां कात्यायनी की पूजा से व्यक्ति को पारिवारिक सुख और समृद्धि मिलती है।
- मां कालरात्रि:
- पूजा दिन: सातवे दिन (सप्तमी) मां कालरात्रि का रूप: मां कालरात्रि का रूप काली के समान भयंकर होता है, और उनके चेहरे पर खून से भरी हुई आँखें होती हैं। महत्व: मां कालरात्रि की पूजा से भक्त के जीवन में असत्य और अधर्म का नाश होता है।
- मां महागौरी:
- पूजा दिन: आठवे दिन (अष्टमी) मां महागौरी का रूप: मां महागौरी का रूप विश्व के सभी दिक्षिण दिशा में होता है और उनके हाथ में त्रिशूल होता है। महत्व: मां महागौरी की पूजा से भक्त को मानसिक और शारीरिक शुद्धि मिलती है, और वे साधना में आत्मनिष्ठा और समर्पण प्राप्त करते हैं।
- मां सिद्धिदात्री:
- पूजा दिन: नौवे दिन (नवमी) मां सिद्धिदात्री का रूप: मां सिद्धिदात्री का रूप सुंदर और आशीर्वादकारी होता है, और उनके साथ दो माता देवियाँ बैठी होती हैं, जिन्हें स्कंदमाता और सरस्वती कहा जाता है। महत्व: मां सिद्धिदात्री की पूजा से व्यक्ति को आशीर्वाद मिलता है और उन्हें सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। इन नौ देवियों की पूजा नवरात्रि के दौरान की जाती है, जिससे भक्त उनकी शक्तियों का आदर करते हैं और उनसे संजागरण की प्राप्ति करते हैं। नवरात्रि के इस अवसर पर, हमें इन देवियों की पूजा और उनके महत्व को समझकर उनकी कृपा प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
दुर्गाष्टमी, नवरात्रि के महत्वपूर्ण दिनों में से एक है जिसे मां दुर्गा के आठवें रूप की पूजा के रूप में मनाया जाता है। यह दिन नवरात्रि के अष्टमी तिथि को पारंपरिक रूप से मनाया जाता है और भारतीय हिन्दू कैलेंडर के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को पड़ता है। यह दिन मां दुर्गा की पूजा का एक महत्वपूर्ण अवसर है और भक्तों द्वारा विशेष आदर और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
दुर्गाष्टमी के दिन लोग माता दुर्गा की पूजा और अर्चना करते हैं, जिसमें माता के आवाहन, पूजा, भजन और आरती शामिल होते हैं। इस दिन विशेष रूप से नौ दिनी व्रत का आयोजन किया जाता है, जिसमें व्रत का आरंभ प्रतिपदा (पहले दिन) से होता है और आठवे दिन (अष्टमी) को पूरा होता है।
मां दुर्गा के दुर्गाष्टमी रूप को "महागौरी" कहा जाता है। मां महागौरी का रूप विश्व के सभी दिक्षिण दिशा में होता है और उनके चेहरे पर खून से भरी हुई आँखें होती हैं। उनके हाथ में त्रिशूल होता है और उनका वाहन सिंह होता है। मां महागौरी की पूजा से भक्तों को आशीर्वाद मिलता है और उनकी दिशा में समस्त बुराईयों का नाश होता है।
इस दिन काली के बदले हुए रुप के साथ मां दुर्गा की पूजा की जाती है और उनकी महाकाव्यिक लड़ाई और शक्तियों की महिमा का स्मरण किया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक अवसर है जिसे भक्त उत्साह, आदर और श्रद्धा के साथ मनाते हैं और अपने जीवन में नये उत्कृष्टता की दिशा में कदम बढ़ाते हैं।
नवरात्रि का सही अर्थ: नवरात्रि का महत्व केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं है, बल्कि इसका व्यापारिक और आर्थिक महत्व भी है। त्योहार के दौरान विभिन्न प्रकार की पूजा सामग्री, वस्त्र, आभूषण आदि की बड़ी मात्रा में बिकती है, जिससे बड़े पैमाने पर आर्थिक गतिविधियाँ होती हैं।
सांस्कृतिक महत्व: नवरात्रि के दौरान संगीत, नृत्य और कला के प्रदर्शनों का आयोजन किया जाता है। लोग विभिन्न प्रकार के फोल्क डांस, गरबा, रास लीला, दंगल आदि का आनंद लेते हैं और अपनी सांस्कृतिक धरोहर को सजीव रूप में दिखाते हैं।
निष्कलंक शक्ति की पूजा: नवरात्रि का अर्थ नौ दिनों तक चलने वाले अद्वितीय उत्सव को दर्शाता है, जिसमें नौ रूपों की पूजा करके मनुष्य दिव्यता की ओर प्रगट होता है। यह त्योहार हमें शक्ति, साहस और सहनशीलता की महत्वपूर्ण शिक्षाएं प्रदान करता है और हमें सामाजिक सद्भावना और एकता की महत्वपूर्णता को समझाता है।
नवरात्रि का आयोजन भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान रखता है और यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर है। यह त्योहार हमें न केवल आपसी सद्भावना का संदेश देता है, बल्कि हमें अपनी परंपराओं और मूल्यों के प्रति समर्पण की भावना को मजबूती से महसूस कराता है। इसके साथ ही, यह हमारे आत्मा को शक्ति, साहस और सकारात्मकता की ओर प्रेरित करता है।
नवरात्रि का इतिहास: History of Navratri
नवरात्रि शब्द संस्कृत में "नौ" और "रात्रि" से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है "नौ रातें"। यह त्योहार वसंत और शरद ऋतु में मनाया जाता है, परंतु शारदीय नवरात्रि का प्रमुख महत्व है। इसे अश्विन मास के शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा से लेकर दशमी तिथि तक मनाया जाता है, जिसका अवधि लगभग दस दिनों की होती है।नवरात्रि का प्राचीन इतिहास पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में प्रकट होता है। इसके अनुसार, माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का आयोजन भगवान श्रीराम ने लंका के राक्षस राजा रावण के विनाश के लिए किया था। रावण का वध भगवान राम द्वारा नवरात्रि के दौरान ही हुआ था, जिससे यह त्योहार महत्वपूर्ण हो गया।
नवरात्रि के आयोजन और महत्व:
Navratri के दौरान लोग माता दुर्गा की पूजा और आराधना करते हैं। मान्यता है कि इन दिनों माता दुर्गा अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं और उन्हें शक्ति और समृद्धि प्रदान करती हैं। नवरात्रि के दौरान विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जैसे कि दुर्गा पूजा, ध्यान, भजन संध्या, आदि। यह त्योहार हिन्दू धर्म के साथ ही भारतीय संस्कृति के आदर्शों और मूल्यों की महत्वपूर्ण प्रतीक है।नवरात्रि के विभिन्न अष्टमी तिथियों पर नौ दिनों तक व्रत रखने की परंपरा भी है, जिसमें भक्त नियमित रूप से विशेष प्रकार के आहार और विश्राम का पालन करते हैं।
नवरात्रि का महत्व धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से ही नहीं होता, बल्कि यह एकता, समरसता, और समाज में भाईचारे की भावना को भी बढ़ावा देता है। यह त्योहार समृद्धि, सफलता, और सद्गुणों की प्रतीक माना जाता है, जिससे लोग अच्छे और उच्च मानकों की ओर अग्रसर होते हैं।
गरबा और दंडिया रास:
गुजरात और पश्चिमी भारत में नवरात्रि के दौरान गरबा और दंडिया रास नामक लोकनृत्यों का आयोजन किया जाता है, जिसमें लोग ध्यान और माता दुर्गा की पूजा के साथ-साथ रंगीनी आवाज़ों और नृत्यों का आनंद लेते हैं। नवरात्रि का महत्व विविधता और विशेषता में है, जो हिन्दू संस्कृति और धार्मिकता के महत्वपूर्ण हिस्से को प्रकट करता है। यह त्योहार न केवल आध्यात्मिक महत्व रखता है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी प्राप्त करता है।
FAQ ? अधिकतर पूछे जाने वाले सवाल
- Q.1 Navratra Kab Se Shuru ho rahe hai
- Ans- इस बार शारदीय नवरात्रि 15 अक्टूबर 2023 दिन रविवार से शुरू हो रहे हैं और 23 अक्टूबर 2023 दिन मंगलवार को समाप्त हो रहे हैं। 24 अक्टूबर विजयादशमी या दशहरा का पर्व मनाया जाएगा।
- Q.2 Ek Saal Me Navrtra Ka Tyohar Kitne Baar Aata hai ?
- Ans- नवरात्री का आयोजन एक बर्ष में दो बार किया जाता है, चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र
- Q.3 Navratri Ka Tyohar Kyo Manaya Jata Hai
- Ans- Navratri के दौरान लोग माता दुर्गा की पूजा और आराधना करते हैं। मान्यता है कि इन दिनों माता दुर्गा अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं और उन्हें शक्ति और समृद्धि प्रदान करती हैं। नवरात्रि के दौरान विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जैसे कि दुर्गा पूजा, ध्यान, भजन संध्या, आदि। यह त्योहार हिन्दू धर्म के साथ ही भारतीय संस्कृति के आदर्शों और मूल्यों की महत्वपूर्ण प्रतीक है।