बाजीराव प्रथम: वो वीर योद्धा जो कभी कोई जंग नही हारा



चीते की चाल बाज की नजर और "बाजीराव" की तलवार पर कभी संदेह नहीं करते कभी भी मात दे सकती है 


परिचय


बाजीराव प्रथम, जिन्हें श्रीमन्त पेशवा बाजीराव बल्लाळ भट्ट भी कहा जाता है, भारतीय इतिहास में एक ऐसे वीर योद्धा जो कभी कोई जंग नही हारे और वीरता की पराकाष्ठा.बाजीराव प्रथम अपनी अद्भुत वीरता, रणनीतिक क्षमता और अदम्य भावना के लिए प्रसिद्ध है। उनका जीवन साहस, नेतृत्व और दृढ़ प्रतिबद्धता का प्रमाण है। 18 अगस्त, 1700 को वर्तमान महाराष्ट्र के सिन्नार में जन्मे बाजीराव ने मराठा साम्राज्य का प्रधान मंत्री (पेशवा) बनकर भारत का इतिहास बदल दिया। बाजीराव पेशवा को थोरले बाजीराव और बाजीराव बल्लाल भट्ट भी कहते थे। वह छत्रपति शिवाजी के बाद गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का सबसे बड़ा समर्थक था। मराठा साम्राज्य ने अपने कुशल नेतृत्व, व्यूह निर्माण और प्रभावी युद्धकौशल के बलबूते पर बहुत तेजी से सबसे अधिक विस्तार किया।
यह लेख एक दिलचस्प इतिहास, महत्वपूर्ण बातें और बाजीराव प्रथम की विरासत को बनाने वाली कई लड़ाइयों पर चर्चा करता है।


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प्रारंभिक जीवन और शक्ति

बाजीराव प्रथम का जन्म भारत के वर्तमान महाराष्ट्र राज्य के सिन्नार शहर में 18 अगस्त 1700 को हुआ था। उन्होंने छोटी उम्र से ही सैन्य रणनीति में गहरी रुचि दिखाई और युद्ध और नेतृत्व में असाधारण कौशल दिखाए। बाजीराव ने 1720 में मराठा राजा छत्रपति शाहू का ध्यान आकर्षित किया, जो उनकी क्षमता को पहचाना और उन्हें पेशवा (प्रधान मंत्री) के रूप में नियुक्त किया, जिससे उनका उत्थान शुरू हुआ।



प्रमुख योगदान और महत्वपूर्ण विवरण

मराठा प्रभाव की व्याख्या: बाजीराव प्रथम ने मराठा साम्राज्य को भारतीय उपमहाद्वीप में मजबूत किया। मराठों ने उनके नेतृत्व में मालवा, गुजरात और बुन्देलखण्ड जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर अपना अधिकार बढ़ा लिया।


सेना में सुधार: बाजीराव ने मराठा सेना में बदलाव लाया जब उन्होंने नवीन सैन्य सुधार शुरू किए। मराठा युद्ध के मैदान में एक कमजोर शक्ति बन गए, क्योंकि वे तेज घुड़सवार सेना के हमलों, लचीली संरचनाओं और अनूठी रणनीति पर जोर देते थे।


सामाजिक सुरक्षा: बाजीराव ने सैन्य साहस के अलावा कला और संस्कृति का भी सम्मान किया था। उन्होंने साहित्य, वास्तुकला और संगीत का समर्थन करके अपने समय की समृद्ध सांस्कृतिक टेपेस्ट्री में योगदान दिया।


निष्क्रिय कार्यकुशलता:
बाजीराव अपने निर्णायक कार्यों और कुशल प्रशासन के लिए जाने जाते थे। रणनीतिक रूप से अपने विरोधियों को हराने की उनकी क्षमता के कारण उन्हें अक्सर "भारत का नेपोलियन" कहा जाता था।

युद्ध और जीत

बाजीराव प्रथम ने अपनी प्रतिभा और साहस को कई लड़ाइयों में दिखाया, जो उनकी विरासत का हिस्सा हैं। उनके कुछ सबसे बड़े संघर्षों में शामिल हैं:


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पालखेड़ युद्ध (1728):
बाजीराव ने हैदराबाद के नियंत्रण और मुगल साम्राज्य के खिलाफ इस युद्ध में रणनीतिक क्षमता दिखाई दी। थोड़ी संख्या में होने के बावजूद, बाजीराव ने चतुर रणनीति और अच्छे नेतृत्व से जीत हासिल की।


Bhopal युद्ध (1737):
इस भयानक युद्ध में निज़ाम की संयुक्त सेना और मुगलों का सामना बाजीराव ने किया। उन्होंने साहसी रणनीति और अपनी व्यक्तिगत वीरता के माध्यम से एक और बड़ी जीत हासिल की।



वसई युद्ध (1739):
नौसैनिक युद्ध में बाजीराव प्रथम ने पुर्तगाली सेना को हराया, जो उनकी सैन्य क्षमता का पूरा प्रदर्शन था।


दिल्ली युद्ध (1737):
बाजीराव के साहसिक दिल्ली की ओर मार्च ने उनकी रणनीतिक क्षमता और महत्वाकांक्षा का प्रदर्शन किया, लेकिन इस अभियान में निर्णायक जीत नहीं मिली।


विरासत और निरंतर प्रभाव

बाजीराव प्रथम, साहस, दृढ़ संकल्प और नेतृत्व के प्रतीक, पीढ़ियों से प्रेरित है। उनकी नवीनतम प्रशासनिक सुधारों और सैन्य रणनीतियों ने भारत का इतिहास बदल दिया। मराठा साम्राज्य के विस्तार और प्रभाव ने उनके शासनकाल में भारतीय मामलों में बाद में प्रमुखता के लिए जगह बनाई।


नतीजतन, बाजीराव प्रथम की जीवनी और सफलताएं दृढ़ इच्छाशक्ति, सैन्य क्षमता और दृढ़ नेतृत्व की शक्ति के प्रमाण हैं। उनकी विरासत नेता, रणनीतिकार और इतिहास के प्रति उत्साही लोगों के लिए प्रेरणा के रूप में काम करती है, जो हमें साहस और विवेक के माध्यम से हासिल किए गए महत्वपूर्ण सफलताओं की याद दिलाती है।


निजी जीवन और विरासत:

1703 में जन्मे काशीबाई पेशवा बाजीराव बल्लाल की पहली पत्नी थी. उनकी माता का नाम शिऊबाई था और पिता का नाम महादाजी कृष्ण जोशी था। मस्तानी बाजीराव की दूसरी पत्नी थी। बाजीराव और काशीबाई के चार बच्चे थे। जिनमें बालाजी बाजीराव, रामचंद्र, रघुनाथ राव और जनार्दन शामिल थे,
Kashibai का जीवन परिचय (हिंदी में)


जन्म:
 काशीबाई बाजीराव बल्लाल, 1703 ईस्वी; पति: बाजीराव बल्लाल बेटो: बालाजी बाजीराव, रामचंद्र, रघुनाथ राव, जनार्दन; जन्म: चासकमान, पुणे, महाराष्ट्र; माता: महादजी कृष्ण जोशी; शिऊबाई; भाई: कृष्णराव छासकर; बाजीराव बल्लाल की माता: राधाबाई, 27 नवंबर 1758 को उनका देहांत हो गया ।


काशीबाई की मौत: अभी तक कोई जानकारी नहीं है कि काशीबाई बाजीराव बल्लाल की मौत कैसे हुई, लेकिन अगर ऐसी जानकारी मिलती है तो हम आपको सबसे पहले अपडेट देंगे। वैसे, काशीबाई बाजीराव बल्लाल की मृत्यु 27 नवंबर 1758 को हुई, लेकिन मृत्यु का कारण नहीं बताया गया।


बाजीराव पेशवा को थोरले बाजीराव और बाजीराव बल्लाल भट्ट भी कहते थे। वह छत्रपति शिवाजी के बाद गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का सबसे बड़ा समर्थक था। मराठा साम्राज्य ने अपने कुशल नेतृत्व, व्यूह निर्माण और प्रभावी युद्धकौशल के बलबूते पर बहुत तेजी से सबसे अधिक विस्तार किया।

दूसरी पत्नी मस्तानी बाई 

एक मुस्लिम महिला मस्तानी के साथ बाजीराव की प्रेम कहानी ने पीढ़ियों से लोगों के मन में जगह बनाई है। उनके रिश्ते को सामाजिक विरोध का सामना करना पड़ा, बाजीराव की चिता पर सती हुई मस्तानी ने कहा प्रेम कहानी में मस्तानी मराठा पेशवा बाजीराव की दूसरी पत्नी थी। वे मुस्लिम थीं और बुंदेलखंड की थीं। वे इतनी सुंदर थीं कि सौन्दर्य सम्राज्ञी भी कहलाती थीं। वे बुंदेलखंड के महाराजा छत्रसाल की बेटी हैं। उनकी मां थी रुहानी बाई मस्तानी, महाराजा की पारसी-मुस्लिम पत्नी। 28 अप्रैल 1740 को रावेर में बीमारी से मराठा पेशवा बाजीराव मर गए। उस समय उनके प्रेमी मस्तानी भी पेशवा की चिता पर सती हो गई थी। मस्तानी के जीवन और मृत्यु को लेकर भी कई बहस होती

सांस्कृतिक संरक्षण और कलात्मक विकास:

अपनी सैन्य और प्रशासनिक उपलब्धियों के अलावा, बाजीराव प्रथम कला और संस्कृति के संरक्षक थे। उनका दरबार कवियों, संगीतकारों और विद्वानों का केंद्र बन गया, जिन्होंने मराठा साम्राज्य के सांस्कृतिक पुनर्जागरण में योगदान दिया। कला के प्रति बाजीराव के समर्थन ने न केवल मराठा संस्कृति को समृद्ध किया, बल्कि शासन के प्रति उनके सर्वांगीण दृष्टिकोण को भी प्रदर्शित किया।


वास्तुशिल्प चमत्कार:

बाजीराव के शासनकाल में कई वास्तुशिल्प चमत्कारों का निर्माण हुआ जो आज भी उनकी दूरदर्शिता और भव्यता के प्रमाण के रूप में खड़े हैं। सबसे उल्लेखनीय उदाहरणों में से एक पुणे में शनिवार वाडा, पेशवा का दृढ़ महल है। इस संरचना में मराठा और मुगल स्थापत्य शैली का मिश्रण है, जो बाजीराव के शासन के तहत संस्कृतियों के संश्लेषण को दर्शाता है।


सैन्य रणनीति की विरासत:

बाजीराव प्रथम की सैन्य रणनीतियों और युक्तियों ने सैन्य कमांडरों की अगली पीढ़ियों को प्रभावित करना जारी रखा। गति, आश्चर्यजनक हमलों और अपरंपरागत युद्ध पर उनके जोर ने रणनीतिक सोच के लिए नए मानक स्थापित किए। उनके कई सिद्धांतों का उनकी प्रासंगिकता और प्रयोज्यता के लिए आज भी सैन्य अकादमियों में अध्ययन किया जाता है।


भारतीय इतिहास पर स्थायी प्रभाव:

बाजीराव प्रथम की विरासत भारतीय इतिहास के इतिहास में गूंजती है। मराठा बैनर के तहत विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों को एकजुट करने की उनकी उल्लेखनीय क्षमता ने उनकी राजनेता कौशल और नेतृत्व कौशल को प्रदर्शित किया। उनके समय में मराठा साम्राज्य की प्रमुखता ने विदेशी आक्रमणों और औपनिवेशिक शक्तियों के खिलाफ भारत की लड़ाई की नींव रखी।


बन चुकी है फिल्म :

बाजीराव प्रथम के जीवन और कारनामों को साहित्य, रंगमंच और सिनेमा में प्रमुख स्थान मिला है। 2015 की बॉलीवुड फिल्म "बाजीराव मस्तानी" ने उनकी कहानी को वैश्विक दर्शकों तक पहुंचाया, जिसमें मस्तानी के साथ उनके रोमांटिक रिश्ते और उनकी सैन्य विजय को दर्शाया गया। इस सिनेमाई चित्रण ने एक महान शख्सियत के रूप में उनकी स्थिति को और मजबूत कर दिया। लेकिन जिस तरह से फिल्म में इतने बड़े योद्धा को बेबस मजनूँ की तरह दिखाना ये सरासर गलत है 

ऐसे हुई थी मस्तानी बाई से पेशवा बाजीराव प्रथम की मुलाकात 

छत्रसाल की मदद करने के लिए पेशवा बुंदेलखंड गए, जहां मस्तानी से मिले. सर्दी के मौसम में पौष मास जिसे फूंस भी कहते है 1728 में मुग़ल सूबेदार मोहम्मद खान बंगश बुंदेलखंड पर हमला करने की योजना बना रहा था। महाराजा छत्रसाल को पता था कि वे इस आक्रमण से बच नहीं सकेंगे। इसलिए छत्रसाल बहुत दुखी हुए और बाजीराव को एक भावुक पत्र लिखा। पत्र मिलते ही बाजीराव बुंदेलखंड पहुंच गए। बाजीराव की सेना ने छत्रसाल की सेना के साथ मिलकर मोहम्मद शाह को मुंहतोड़ जवाब दिया। लड़ाई में बंगश पराजित हुआ। उस समय बंगश के बेटे कायम खान ने बड़ी सेना के साथ अपने पिता की मदद करना चाहा, लेकिन मराठा-बुंदेली सेना के जोरदार हमलों के आगे उसे भी हार मिली। इस लड़ाई में बंगश को पकड़ लिया गया। उसे वादा किया गया कि वह बुंदेलखंड पर फिर कभी हमला नहीं करेगा।


छत्रसाल ने बाजीराव को इस मदद के लिए धन्यवाद दिया। बाजीराव उनका तीसरा बच्चा था। इतना ही नहीं, छत्रसाल ने अपने राज्य को तीन भागों में बाँटकर बाजीराव को एक हिस्सा दे दिया। झांसी, कालपी, सिरोंज, सागर और हिरदेनगर को इसमें शामिल किया गया था। महाराजा ने बाजीराव को राज्य और अपनी बेटी मस्तानी का हाथ भी दिया। कुछ लोगों का विचार है कि मस्तानी छत्रसाल के दरबार की एक 'राजनर्तकी' थी।


अमेरिका के इतिहासकार बर्नार्ड मांटोगोमेरी ने कहा था 

पालखेड़ युद्ध में निजाम की बड़ी सेनाओं को पराजित करने में बाजीराव पेशवा भारत के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ सेनापति था।"

साथ ही, बाजीराव प्रथम और उनके भाई चिमाजी अप्पा ने बेसिन के लोगों को पुर्तगालियों से बचाया, जो उन्हें जबरन धर्म परिवर्तन करवाने और यूरोपीय सभ्यता को भारत में लाने की कोशिश कर रहे थे। उन्हें 1739 में अपने भाई चिमाजी अप्पा को भेजकर पुर्तगालियों को हराकर वसई की संधि करवा दी।


बाजीराव प्रथम की मृत्यु कैसे हुई 

इतिहासकारों का कहना है कि बाजीराव सन् 1740 में अपनी सेना के साथ खरगांव में थे जब उन्हें बुखार हुआ। यह बुखार कुछ हफ्तों तक चला, लेकिन कम नहीं हुआ. अंततः, यह बुखार बाजीराव की हत्या का कारण बना।


निष्कर्ष:

बाजीराव प्रथम का जीवन वीरता, नेतृत्व, प्रेम और सांस्कृतिक संरक्षण से बुना हुआ एक चित्रपट है। अपने लोगों, अपने राष्ट्र और अपने सिद्धांतों के प्रति उनका अटूट समर्पण युगों-युगों तक गूंजता रहता है। बाजीराव की विरासत एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करती है कि इतिहास न केवल जीती गई लड़ाइयों और जीते गए क्षेत्रों से आकार लेता है, बल्कि संस्कृति और कला से समृद्ध समाज को प्रेरित करने, नवाचार करने और बढ़ावा देने की क्षमता से भी आकार लेता है। जब हम बाजीराव प्रथम को याद करते हैं, तो हमें मानवीय दृढ़ संकल्प की स्थायी शक्ति और उन लोगों के स्थायी प्रभाव की याद आती है जो सपने देखने और कार्य करने का साहस करते हैं।



अस्वीकरण: इस लेख में दी गई जानकारी केवल शैक्षिक और आम जानकारी के लिए है; यह किसी भी व्यक्ति, घटना, या सामग्री की तुलना, समर्थन, या विरोध नहीं करता। कृपया ध्यान दें कि इस लेख में दी गई जानकारी मेरी ज्ञान की सीमा के अंतर्गत  है  यदि आपको इस विषय में अतिरिक्त तथ्य या नवीनतम जानकारी चाहिए, तो कृपया संबंधित स्रोतों से जांच करें।



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