श्री खाटू श्याम कथा : कैसे बने हारे का सहारा




श्री खाटू श्याम कथा " कैसे बने हारे का सहारा "

khatu shyam mandir rajasthan,-: नमस्कार मित्रो आप ने बाबा श्री खाटू  श्याम , श्याम बाबा कौन है ? क्या है? कैसे है ? कहाँ रहते हैं एवं प्रत्यक्ष  कैसे लगते है? इस प्रकार के कई प्रश्न कई लोगों के मन में जिज्ञासा बनाए हुए हैं। पूरी कथा जानने के लिए तो विस्तार में जाना पड़ेगा। आप जैसे-जैसे श्याम जगत के करीब आते जाएंगे


श्री खाटू श्याम मंदिर भारत के प्रसिद्ध मंदिरों  में से एक हैं। यह भगवान कृष्ण से समर्पित मंदिर हैं। खाटू श्याम मंदिर भारत के राजस्थान राज्य के सीकर जिले से करीब 65 किलो मीटर की दूरी पर एक छोटे से गांव का प्रसिद्ध हिंदू मंदिर हैं। खाटू श्याम मंदिर में प्रत्येक वर्ष करीब 90 लाख से अधिक भक्त खाटू श्याम के दर्शन करने के लिए आते हैं। विस्तृत जानकारी मिलती जाएगी। 


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श्याम बाबा का प्रादुर्भाव

संक्षेप में आपको बाबा के विषय में जानकारी देने का प्रयास किया जा रहा है।
महाभारत काल की सारी घटना है जिस काल में श्याम बाबा का प्रादुर्भाव हुआ। पाण्डव कुलभूषण बर्बरीक बड़े ही बलशाली एवं दानवीर थे। देवादिदेव महादेव एवं जगदम्बा का इन्हें प्रत्यक्ष  आशीर्वाद प्राप्त था। ये इनके प्रिय भक्त थे। इनसे इनको तीन तीर प्राप्त हुए थे जिनसे वे सारे त्रिलोक का संहार कर सकते थे।



 माता से आज्ञा ले, ये युद्ध देखने घर से लीले घोड़े पर सवार होकर चले ( इसलिए इन्हें लीले असवार भी कहा जाता है)। कौरवों ने पाण्डवों के साथ हमेशा छल किया। बराबर के हिस्सेदार होने के बावजूद श्रीकृष्ण द्वारा इनके लिए पाँच गाँव मांगने पर भी कौरवों ने पाँच इंच भूमि देने से भी इन्कार कर दिया। पाण्डव शान्तिप्रिय एवं धर्मावलम्बी थे। जंगल जंगल भटकते रहते थे। 


धर्म के रक्षक श्रीकृष्ण ने अन्ततः धर्म की रक्षा के लिए धर्मयुद्ध महाभारत का ऐलान कर डाला और स्वयं इसके सारथी बनें। जिसके पक्ष में स्वयं नारायण हों उस पक्ष की हार क्या कभी हो सकती है। किन्तु,कौरवों को श्रीकृष्ण एक मायावी, छलिया एवं गाय चराने वाले के सिवा कुछ प्रतीत नहीं होते थे। स्वयं वीर बर्बरीक की माता को भी पाण्डवों की जीत का संदेह था । 


ऐसे बने हारे का सहारा 

अतः अपने पुत्र की वीरता को देख उसने वचन मांगा कि तुम युद्ध देखने अवश्य जाओ किन्तु यदि वहां करना पड़े तो हारे का साथ देना (मन में था पाण्डवों का साथ
देना पर खुल कर नहीं कहा ) और मातृभक्त पुत्र ने माता को "हारे का साथ" देने का वचन दिया।
अन्तर्यामी लीला पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण को भान हो गया कि बर्बरीक युद्ध देखने चल पड़े हैं और युद्ध में कौरवों की हार निश्चित है। माता को दिए वचनानुसार वे कौरवों की तरफ से यदि युद्ध कर बैठे तो पाण्डवों का विनाश निश्चित है उन्हें कोई नहीं बचा सकेगा।


जब भगवान श्री कृष्ण ने धरा ब्राह्मण रूप 

अतः उन्होंने लीला रची। ब्राह्मण वेष बनाकर रास्ते में ही बर्बरीक से मिलने की सोची। बर्बरीक से भेंट होने पर पहले उन्होंने कई प्रकार की बातें की। फिर उनसे परिचय पूछा । बर्बरीक ने अपने बल पौरुष एवं दान शीलता का बखान किया। ब्राह्मण रूपधारी श्रीकृष्ण ने उनकी वीरता का प्रत्यक्ष परिचय देने के लिए कहा । बर्बरीक ने एक ही बाण से सारी सृष्टि को संहार करने का ओज स्वर गुंजायमान किया । ब्राह्मण ने असहमति जताते हुए वहीं स्थित एक पीपल के पेड़ के सभी पत्तों को एक ही बाण में बेधकर दिखाने को कहा- जिस समय बर्बरीक ध्यान मग्न हो अनुसंधान करने लगे- उसी समय श्रीकृष्ण ने एक पत्ता तोड़ अपने पैर के नीचे दबा लिया। 



सोचा मैं स्वयं इस पत्ते की रक्षा करूँ देखूँ क्या होता है किन्तु बर्बरीक के बाण ने सभी पत्तों का छेदन कर डाला - श्रीकृष्ण द्वारा रक्षित पत्ता भी नहीं बच पाया। श्रीकृष्ण सारी बात समझ गए अब उन्होंने एक अद्भुत लीला रची जो सदैव अमर रहेगी। श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से दान मांगा और उसका वचन ले लिया। वचन मिलने पर श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसके शीश को ही दान में मांग लिया। किशोर अचम्भित रह गया- यह क्या मांग लिया - किन्तु बड़े ही नम्र भाव में उन्होंने ब्राह्मण रूप धारण किये भगवान् श्री कृष्ण  की आश्चर्य पूर्वक निवेदन किया  हे "प्रभु आपको मेरे शीश से क्या प्रयोजन, आप कौन हैं ? ब्राह्मण तो नहीं हो सकते । बर्बरीक ने बड़े ही विनम्र होकर कहा कृपा कर के आप अपने वास्तविक रूप  को प्रगट कर शंका का निवारण करें। 



श्रीकृष्ण को शीश दान कर डाला

बर्बरीक के निवेदन को सुनकर भगवान  श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने रूप का दर्शन कराया और समझाया "वत्स, महाभारत युद्ध के लिए एक वीर की बलि चाहिए तुम पाण्डव कुल के हो । युगों में जब कोई भी महाभारत की बात करेगा अतः पाडंवों रक्षा करने हेतु हे बर्बरीक  तुम्हारा बलिदान सदैव याद किया जाएगा।" बर्बरीक ने शीश दान से पहले युद्ध देखने की इच्छा प्रकट की- भगवान ने 'तथास्तु' कह कर वीर योद्धा को संतुष्ट किया। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड सुन्न हो गया- अब ऐसी घटना होने वाली थी जो न तो हुई और न आगे किसी भी युग में होगी। वीर ने अपने आराध्य देवी-देवताओं का वन्दन किया। माता को नमन किया और फिर कमर से कटार खींचकर एक ही बार में अपने शीश को धड़ से अलगकर श्रीकृष्ण को शीश दान कर डाला । 


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भगवान श्री मदुसूदन ने बिना किसी विलम्ब के  शीश को अपने हाथ में उठा लिया एवं अमृत से सींच कर अमर करते हुए एक टीले पर रखवा दिया। खाटू मन्दिर में आप जब जाएंगे आपको बाबा का नित नया रूप मिलेगा। किन्ही किन्ही को तो इस विग्रह में कई बदलाव नजर आते हैं। कभी मोटा तो कभी दुबला। कभी हंसता हुआ तो कभी ऐसा तेज भरा कि नजरें भी नहीं टिक पाती। प्रसंगवश आगे ये बात लिखने से रह नहीं जाए अतः यहीं लिख दिया प्रेमियों युद्ध शुरू हुआ- अमरत्व प्राप्त शीश पूरे युद्ध को देख रहा था- युद्ध के दौरान कई लीलाएँ घटती रहीं। 



जब भगवान् श्री कृष्ण ने बर्बरीक के द्वारा पाण्ड्वो का घमंड तोडा 

धर्म और अधर्म की आँख मिचौली निरन्तर जारी थी- दृष्टा मौन हो सब देख रहा था । अन्ततः कौरवों का अन्त हुआ। पाण्डव विजयी हुए। विजय के मद ने मति बदल दी। सभी आत्म प्रशंसा में लग गए - मतान्तर होने पर श्रीकृष्ण के पास निर्णय के लिए पहुँचे। श्रीकृष्ण ने कहा, “मैं तो स्वयं व्यस्त था आप में से किसने क्या पराक्रम दिखाया, देख नहीं सका। बर्बरीक के पास चलें वहीं निर्णय मिलेगा। अब तक बर्बरीक के शीश दान की कहानी पाण्डवों को नहीं मालूम हुई थी ।


 देवकीनन्दन द्वारा  बर्बरीक से पाण्डवों के पराक्रम के बारे में पूछने पर- शीश ने उत्तर दिया "प्रभु युद्ध में आपका सुदर्शन चक्र नाच हा था और जगदम्बा खप्पर भर-भर लहू का पान कर रही थी मुझे तो ये लोग कहीं नजर नहीं आए बर्बरीक के उत्तर को सुन सभी पाण्डवों की नजरें नीची हो गई। मुस्करा रहे थे वासुदेव बर्बरीक से धर्मानुकूल निर्णय सुनकर | श्रीकृष्ण ने बर्बरीक का सभी से परिचय कराया ।


 बाबा श्री खाटू श्याम के भक्तो , स्कन्धपुराण में बर्बरीक को भीम के पुत्र घटोतकचका पुत्र बतलाया गया है। जबकि कई जगह इन्हें भीम का पौत्र नहीं पुत्र माना गया है। हारे का सहारा बाबा श्री खाटू श्याम  सकल फलदायक हैं क्योंकि इन्हें श्रीकृष्ण से ऐसा ही वरदान मिला। वैस हमारी संस्कृति वेदों और पुराणों के आधार पर टिकी है। 

श्रीकृष्ण ने खुश होकर इन्हें अपना नाम श्याम, अपनी कलाएँ एवं अपन शक्तियाँ प्रदान की

पुनश्चः पाण्डवों को दिए निर्णय के तत्काल बाद श्रीकृष्ण ने खुश होकर इन्हें अपना नाम श्याम, अपनी कलाएँ एवं अपन शक्तियाँ प्रदान की।  साथ ही कलयुग में घर घर पूजे जाने का वरदान भी दिया- प्रभु का स्वर गूँजा-- बर्बरीक धरती पर तुमसे बड़ा दानी ना तो हुआ है और ना ही होगा- मां को दिए वचन के अनुसार तुम हारे का सहारा बनोगे।कल्याण की भावना से तुम्हारे दरबार में तुमसे लोग जो भी मांगेगे-- उन्हें मिलेगा। वे खाली झोली लेकर वापस नहीं जाएंगे। तुम्हारे दर पर सबोंकी इच्छाएं पूर्ण होंगी।


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सालासर बालाजी से खाटू श्याम के बीच की दूरी, इन दोनों तीर्थों के बीच की दूरी लगभग 100 किमी है।

अगर आप सालासर बालाजी से खाटू श्याम जाना चाहते हैं तो आप अपने स्वयं के परिवहन के साधन का उपयोग कर सकते हैं। खाटू श्याम आप कार और बाइक दोनों से जा सकते हैं। जिसमें आपको खाटू श्याम पहुंचने में लगभग 2 घंटे लगेंगे और आप चाहें तो टैक्सी से भी यात्रा कर सकते हैं। सालासर बालाजी से खाटू श्याम तक आपको टैक्सियां ​​देखने को मिल जाएंगी। टैक्सी भी आपको सिर्फ 2 घंटे ही ले जाएगी.

अब आपको सालासर बालाजी से खाटू श्याम के लिए एसी बसें भी देखने को मिलेंगी। जिसमें सालासर बालाजी से खाटू श्याम पहुंचने में आपको सिर्फ आधा घंटा लगेगा।

मेहंदीपुर बालाजी से खाटू श्याम की दूरी 195.7km हैं

श्री श्यामा देवाय नमः 



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